एक समय की बात है कि शुंम्भ और निशुम्भ नामक दो राक्षस उस संसार में पैदा हुए वे इतने बलशाली थे कि पृथ्वी एवं पाताल के सब राजा उनसे हार गए । अब उन्होने स्वर्ग पर चढाई कर दि । देवताओ ने भगवान विष्णु की स्तुति कि । उनकी स्तुति करने पर विष्णुजी के शरीर से एक ज्योती प्रकट हुई जो चामुण्डा थी । वह बहुत ही रूपवान थी। उनके रूप पर मुग्ध होकर शुम्भ-निशुम्भ ने सुग्रीव नाम का दूत देवी के पास भेजा कि वह हम दोनो मे से किसी एक साथ शादी कर ले । उस दूत को देवी ने वापिस भेज दिया । कि जो मुझे युद्ध में परासत करेगा उसी के साथ में शादी करूंगी। उन दोनो ने पहले युद्ध के लिए अपने सेनापति धुम्राक्ष को आक्रमण के लिए भेजा । धूम्राक्ष सेना सहित मारा गया। इसके बाद चण्ड-मुण्ड लडने आए । चण्ड-मुण्ड भी देवी के हाथो मारे गए। अब रक्तबीज लडने आया। उसके शरीर से रक्त की एक बुँद जमीन पर घिरने से एक वीर पैदा हो जाता था। इस पर देवी ने रक्तबीज के शरीर से निकले खुन को अपने खप्पर में लकर पी गयी। इस प्रकार रक्तबीज भी मारा गया । अन्त में शुम्भ निशुम्भ लडने आए । और देवी के हाथो मारे गये । सभी देवता दैत्यो की मृत्यु से बहुत खुश हुए ।