आसमाता की पूजा का व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अष्टमी तक कभी भी किया जा सकता है ।
विधानः व्रत के दिन एक लकडी की पटरी पर जल का भरा लोटा रखकर । लौटे पर एक स्वास्तिक चिह्व बनाये और चावल चढावे । गेहूँ के सात दाने हाथ मे लेकर कहानी सुने । हलवा, पूडी तथा रूपये बायना निकालकर सासुजी को चरण स्पर्श करके देना चाहीए ।
कथाः एक आसलिय बावलिया नाम का आदमी था । उसे जुआ खेलने का शौक था । इसके साथ साथ वह ब्राह्यणो को भोजन कराता था । उसकी इस आदत से उसकी भाभियो ने उसे घर से निकाल दिया । वह घुमता हुआ एक शहर मे पहूँच गया । वह आसमाता का नाम लेकर एक जगह बैठ गया । उसने आस पास के आदमियो के द्वारा शहर में प्रचारित करवा दिया कि एक उच्च कोटि का जुआ खेलने वाला आया हैं । यह बात राजा तक भी पहुच गई । राजा ने उसे जुआ खेलने के लिए बुलाया । जुए में राजा अपना राजपाट सब कुछ हार गया । आसलिया बावलिया राजा को जुए में हराकर स्वयं राजा बन गया । इधर आसलिया बावलिया के घर पर भोजन का अकाल पड गया । जब घर वालो को यह पता चला कि उनका भाई राजा को हराकर स्वय राजा बन गया है तो उसके भाई-भावज माता उसको देखने शहर गए ।
अपने बेटे को राजा बना देखकर माँ की आखो में आसू आ गए । राजा ने अपनी माता के चरर्ण स्पर्श किए । तब उनकी माँ ने उनसे कहा कि, ”मैं आसमाता का उजमन करूँगी“। तब सब लोगो ने घर जाकर आसमाता का उजमन किया । उसके बाद आसलिय बावलिया को राज पाट दिया, वैसे ही सबकी मनोकामना पूरी करना ।