बसोडा का त्यौहार होली के सात आठ दिन बाद अर्थात चैत्र कृष्ण पक्ष में प्रथम सोमवार या बृहस्पतिवार को मनाया जाता है इस दिन बासी भोजन ( एक दिन पहने बना ) खाया जाता हैं । बसोडा के दिन सुबह एक थाली में रबडी, रोटी, चावल, रोली, मोली, मूँग, मूँग के छिलके वाली दाल, हल्दी, धुपबती एक गुलरी ( बडकुल्ला) की माला जो होली के दिन मालाये बचाई थी आदि रख लेना चाहीए ।
इस सामान को घर के सभी प्राणियो के हाथ लगवा कर शीतला माता पर भेज देना चाहीए । रास्ते में शीतला माता के गीत गाये जावे । यदि किसी के यहा कुंडारा भरा जाता हो तो वे एक बडा कुंडारा और छः कुंडारे बाजार से मँगवा कर । प्रत्येक में अलग अलग रबडी, भात, रसगुल्ले, बाजरा, पिसी हुई हल्दी, इच्छानुसार रख लेवे । उन कुंडारो को रखकर पूजन करें । हल्दी का टीका निकालें । हल्दी से पूजन करे । फिर सब कुण्डारो को बडे कुण्डारे में रख लें ।
इसके बाद एक फूल माला ( गुलरी की माला ) सब कुण्डारे और समस्त पुजा की सामग्री शीतला माता पर चढा देवे । इसके बाद कहानी सुने ।
कथाः किसी गाँव में एक बुढिया रहती थी । वह बसोडा के दिन शीतला माता का पूजन करती थी और बासी भोजन खाती थी । शेष गाँव वाले शीतला माता की पूजा नही करते थें । अचानक एक दि गाँव में आग लग गई । बुढिया के घर को छोडकर सब घर आग में स्वाहा हो गये । गाँव वालो को बडा आश्चर्य हुआ कि बुढिया का मकान कैसे बच गया? सब गाँव वाले बुढिया से पूछने लगे की तुम्हारा घर क्यो नही जला । बुढिया बोली मैं शीतला माता कि पूजा करती थी । उसी के कारण मेरा घर बच गया । तभी से सब गाँव वाले शीतला माता कि पूजा करने लगे और बासी भोजन खाने लगे ।