मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की दशमी को दत्तोत्रय जयन्ती मनाई जाती है । पुराणो के अनुसार दत्तात्रेय के तीन सिर व छः भुजाएँ थी । वे त्रिदेवो के अंश माने जाते है । दत्तात्रेय अपनी बहुज्ञता के कारण पौराणिक इतिहास मे विख्यात है । इनके जन्म की कथा बडी विचित्र है ।
कथाः एक बार नारद मुनि, भगवान श्ंाकर, विष्णु और ब्रह्याजी से मिलने स्वर्ग लोक गये । परन्तु उनकी भेट त्रिदेवो में से किसी से न हो । उनकी भेट त्रिदेवो की पत्नियो पार्वती लक्ष्मी एव सरस्वती जी से हो गई । नारदजी ने तीनो का घमण्ड तोडने के लिए कहा कि मैं विश्वभर का भ्रमण करता रहता हूँ। परन्तु अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूइया के समान पतिव्रत धर्मवाली शील एवं सद्गुण सम्पन्न स्त्री मैंने नही देखी । आप तीनो देवियाँ भी पतिव्रत धर्म पालन में उनसे पीछे है । यह सुनकर उनके अह्म को बडी ठेस लगी क्योकी वे समझती थी कि हमारे समान पतिव्रता स्त्री संसार मे नही है । नारदजी के चले जाने के बाद तीनो देवियो ने अपने अपने देवो से सती अनुसुइया का पतिव्रत धर्म नष्ट करने का आग्रह किया । संयोगवश त्रिदेव ने एक ही समय अत्रि मुनि के आश्रम पर पहुँचे तीनो देवो ने एक ही उद्देश्य था । अनुसूइया का पति धर्म नष्ट करना । तीनो ने मिलकर योजना बना डाली । तीनो देवो ने ऋषियो का वेष धारण कर अनुसूइया से भिक्षा माँगी । भिक्षा मे उन्होने भोजन करने की इच्छा प्रकट की ।
अतिथी सत्कार को अपना धर्म समझने वाली अनुसूइया ने कहा आप स्नान आदि से निवृत होकर आइए तब तक मै आफ लिए रसोई तैयार करती हूँ । तीनो देव स्नान करके आए तो अनुसूइया ने उन्हे आसन ग्रहण करने को कहा । इस पर तीनो देव बोले हम तभी आसन ग्रहण कर सकते है जब तुम प्राकृतिक अवस्था में बिना कपडो के हमे भोजन कराओगी। अनुसूइया के तन बदन में आग लग गई परन्तु पतिव्रत धर्म के कारण वह त्रिदेवो की चाल समझ गई । अनुसूइया ने अत्रि ऋषि के चरणोदक को त्रिदेवो के ऊपर छिडक दिया । इससे त्रिदेव छोटे-छोटे बालको के रूप में बदल गए तब सबको उनकी शर्त के मुताबिक अनुसूइया ने भोजन कराया तथा पालने पर अलग अलग उन्हे झुलाने लगी । काफी समय बीत जाने पर त्रिदेव नही लौटे तो त्रिदेवियो को चिन्ता होने लगी । त्रिदेवियाँ त्रिदेव को खोजती हुई अत्रि ऋषि के आश्रम में पहुची और सती अनुसूइया से त्रिदेवो के बारे मे जानकारी करने लगी । अनुसूइया ने पालनो की ओर इगित करके कहा कि तुम्हारे देव पालनो में आराम कर रहे है । अपने अपने देव को पहचान लो परन्तु तीनो के चेहरे एक से होने के कारण वे न पहचान सकी । लक्ष्मीजी ने बहुत चालाकी से विष्णु को पालने से उठाया तो वे शंकर निकले उस पर उनका बडा उपहास करना पडा ।
तीनो देवियो ने अनुनय विनय करने पर अनुसूइया ने कहा कि इन तीनो ने मेरा दूध पिया है । इसलिए इन्हे किसी न किसी रूप में मेरे पास रहना होगा । इस पर त्रिदेवो के अंश से एक विशिष्ट बालक का जन्म हुआ जिसके तीन सिर तथा छः भुजाएँ थी । यही बालक बडा होकर दत्तात्रेय ऋषि कहलाए । अनुसूइया ने पुनः पति चरणोदक से त्रिदेवो को पूर्ववत कर दिया ।