गणेश चतुर्थी का व्रत मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पुत्रदा एकादशी
यह व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है इस व्रत में भगवान विष्णु की पूजा का विधान है । इस व्रत मे सन्तान की प्राप्ति होती है।
कथाः भद्रावती नगर में एक समय राजा सुकेतू का राज्य था । उसकी पत्नी का नाम शैव्या था । उनके सन्तान न होने के कारण वे बडे दुःखी रहते थे । एक दिन दोनो राजा रानी मंत्री को राजपाट सौपकर वन को चले गये । उनके मन मे आत्महत्या करने का विचार आया परन्तु फौरन ही राजा ने सोचा आत्माहत्या से बढकर कोई पाप नही है । इतने मे उन्हे वेद पाठ के स्वर सुनाई पडे । वे उसी तरफ चल दिए । ऋषियो ने उन्हे ”पुत्रदा एकादशी“ का व्रत करने की सलाह दी । राजा रानी ने उनकी बात मानकर एकादशी व्रत किया इससे उन्हे पुत्र प्राप्त हुआ । को रखा जाता है इस दिन विद्या-बुद्धि-वारिधि के स्वामी गणेश तथा चन्द्रमा की पूजा की जाती है ।
विधानः नैवेद्य सामग्री तिल, ईख, अमरूद, गुड, तथा घी से चन्द्रमा व गणेशजी का भोग लगाया जाता है । दिनभर व्रत रखकर सायंकाल चन्द्रमा को दुध का अर्ध्य देते है । गौरी गणेश की स्थापना कर उनका पूजन किया जाता है तथा वर्ष भर उन्हे घर में रखते है । नैवेद्य को रात्रि भर बढकर रखा जाता है जिसे ”पहार“ कहते है । प्रातः पहार को पुत्र खोलता है तथा भाई बन्धुओ में बाँट दिया जाता है ।
कथाः एक बार भगवान शंकर ने अपने दोनो पुत्रो कार्तिकेय तथा गणेश तुमसे से कौन ऐसा वीर है जो देवताओ की रक्षा कर सके । तब कार्तिकेस ने अपने को देवताओ का सेनापति प्रमाणित करते हूए देव रक्षा योग्य अधिकारी बताया । इसके बाद भगवान शंकर ने गणेश पूछा । तब गणेशजी ने कहा मैं तो बिना सेनापति बने ही देवताओ के सब संकट हर सकता हूँ । शिवजी ने दोनो बालको की परीक्षा सबसे पहले करके मेरे पास आ जायेगा वही वीर तथा सर्वश्रेष्ठ घोषित किया जायेगा । कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर चढकर पृथ्वी की परिक्रमा करने चल पडे । गणेशजी ने सोचा अपने वाहन चूले पर बैठकर पृथ्वी परिक्रमा पूरी करने में बहुत समय लग जायेगा इसलिए कोई और युक्ति सोचनी चाहीए ।
गणेशजी अपने माता पिता की सात बार परिक्रमा की और कार्तिकेय के आने की प्रतीक्षा करने लगे । कार्तिकेय ने लौटने पर अपने पिता से कहा गणेश तो पृथ्वी की परिक्रमा करने गया ही नही । इस पर गणेश जी बोले मैने अपने माता पिता की सात बार परिक्रमा की है । माता पिता मे ही समस्त तीर्थ निहित है इसलिए मैने आपकी सात बार परिक्रमा की है । गणेशजी की युक्ति सुनकर सब देवता और कार्तिकेय ने उनकी बात सिर झुकाकर स्वीकार कर ली । तब शंकर जी ने गणेशज को आशीर्वाद दिया कि समस्त देवताओ में सर्वप्रथम तुम्हारी पूजा होगी । गणेशजी ने पिता की आज्ञानुसार देवताओ का संकट दुर किया । यह शुभ समाचार जानकर भगवान शंकर ने कहा कि चतुर्थी तिथी के दिन चन्द्रमा तुम्हारे मस्तक का ताज बनकर पूरे विश्व को शीतलता प्रदान करा सकेगा । जो स्त्री पुरूष इस तिथी पर तुम्हारा पूजन तथा चन्द्रमा को अर्ध्य देकर उसका दहिक तथा भौजिक ताप दूर होगा और ऐश्वर्य, पुत्र सौभाग्य को प्राप्त होगा ।