यह व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है । इसदिन गौ की पूजा करने का विधान है । साथ मे भगवान लक्ष्मीनारायण की भी पूजा की जाती है । प्रथम एक मंडप तैयार कर भगवान की प्रतिमा को स्नान करा कर उसमें स्थापित करे, गौओ की पूजा में निम्न मंत्र पढकर गायो को नमस्कार करें-
पंचगाँव समुत्पन्नाः मध्यमाने महोदधौ।
तेसा मध्ये तु यानन्द तस्मै धेन्वे नमो नमः।।
क्षीर सागर का मंथन होने पर उस समय पाँच गायें पैदा हुई । उनके बीच मे नन्दा नाम वाली गाय है उस गाय को बारम्बार नमस्कार है । पुनः निम्न मंत्र पढकर गाय ब्राह्यण को दान कर दे -
गावों मामग्रमः सन्तु गावों में सन्तुपृष्ठतः।
गावों में पार्श्वतः सन्तु गवाँ मध्ये वासभ्यहम ।।
गाएँ मेरे आगे, पीछे रहें। गाएँ मेरी बगल मे रहे और मैं गायो के बीच में निवास करता रहूँ । इसके बाद ब्राह्यण को दक्षिणा देकर आदर सत्कार सहित विदा करे । जो इस व्रत को करता है वह सहस्रो अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है ।