जिस मास में सूर्य संक्रान्ति नही होती उसे अधिमास ( मल मास या पुरूषोत्तम मास ) कहते हैं । अधिमास ३२ मास १६दिन तथा चार घडी में अन्तर से आता हैं। अधिमास में फल-प्राप्ति की कामना से लिए जानेवाले सभी कार्य वर्जित हैं ।
इस महीने में दान पुण्य करने का फल अक्षय होता है। यदि दान न किया जा सके तो ब्राह्यणो तथा सन्तो की सेवा सर्वोत्तम मानी गई हैं । दान में खर्च किया गया धन क्षीण नही होता । उत्तरोतर बढता ही जाता हैं । जिस प्रकार छोटे से बट बीज से विशाल वृक्ष पैदा होता है। ठीक वैसे मलमास में किया गया । दान अन्नत फलदायक सिद्ध होता हैं । इस व्रत के विषय में भगवान श्रीकृष्ण का कथन है कि इसका फलदाता तथा भोक्ता सब कुछ मैं ही हूँ । प्राचीन काल में राजा नहुष ने इन्द्रपद प्राप्ति के मद में इन्द्राणी पर आसक्त होकर उसकी आज्ञानुसार ऋषियो के कंधो पर उठाई हुई पालकी पर सवार होकर
उसके महल की ओर कुच किया । नहुष कामातुरता के कारण अन्धा हो रहा था । वह ऋषियो से बार बार सर्प सर्प (चलो-चलो) कह रहा था । इस धृष्टता के कारण महर्षि अगस्त्य के शाप से वह स्वय सर्प हो गया । अन्त में उसे अपने कृत्य पर बडा पश्चाताप हुआ । महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ । महर्षि वशिष्ठ की आज्ञा से उसने प्रदोष व्रत किय और सर्प योनि से मुक्त हुआ ।