इस दिन सौन्दर्य रूप श्री कृष्ण की पुजा की जाती है। ऐसा करने से भगवान सुन्दरता देते है । कथाः एक समय भारतवर्ष में ”हिरण्यगभ“ नामक नगर में एक योगीराज रहते थे । उन्होने अपने मन को एकाग्र करके भगवान मे लीन होना चाहा । उन्होने समाधि लगा ली। समाधि को कुछ ही दिन बीते थे कि उनके शरीर मे किडे लग गये । आखो के रोओ, भौहो पर और सिर पर बालो मे जुएँ हो गई इससे योगीराज दुःखी रहने लगे । उसी समय नारदमुनि वहाँ पधारे । योगीराज ने नारद मुनि से पूछा मैं समाधि में था, परन्तु मेरी यह दशा क्यो हो गई । तब नारदजी ने बताया- हे योगीराज! तुम भगवान का चिन्तन तो करते हो परन्तु देह आचार का पालन नही करते । इसलिए तुम्हारी यह दशा हुई । योगीराज ने देह आचार के विषय के बारे मे नारद जी से पुछा।
नारद जी बोले- देह आचार के विषय में जानने से अब कोई लाभ नही । पहले तुम्हे जो मैं बताता हूँ उसे करो, देह आचार के बारे में फिर बताऊँगा । इस बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखकर भगवान की पूजा ध्यान से करना ऐसा करने से तुम्हारा शरीर पहले जैसा हो जाएगा ।
योगीराज ने ऐसा ही किया और उनका शरीर पहले जैसा हो गया । उसी दिन से इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी कहते है ।