दासी रानी की बहन के पास गई । उस दिन वृहस्पतिवार था । रानी का बहन उस समय वृहस्पतिवार की कथा सुन रही थी । दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया । जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई । उसे क्रोध भी आया । दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी । सुनकर, रानी ने अपने भाग्य को कोसा ।उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परन्तु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी । कथा सुनकर और पूजन समाप्त कर वह अपनी बहन के घर गई और कहने लगी, हे बहन । मैं वृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी । तुम्हारी दासी गई परन्तु जब तक कथा होती है, तब तक न उठते है और न बोलते है, इसीलिये मैं नहीं बोली । कहो, दासी क्यों गई थी ।रानी बोली, बहन । हमारे घर अनाज नहीं था । ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई । उसने दासियों समेत भूखा रहने की बात भी अपनी बहन को बता दी । रानी की बहन बोली, बहन देखो । वृहस्पतिदेव भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते है । देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो । यह सुनकर दासी घर के अन्दर गई तो वहाँ उसे एक घड़ा अनाज का भरा मिल गया । उसे बड़ी हैरानी हुई क्योंकि उसे एक एक बर्तन देख लिया था । उसने बाहर आकर रानी को बताया । दासी रानी से कहने लगी, हे रानी । जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते है, इसलिये क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाये, हम भी व्रत किया करेंगे । दासी के कहने पर रानी ने अपनी बहन से वृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा । उसकी बहन ने बताया, वृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से विष्णु भगवान का केले की जड़ में पूजन करें तथा दीपक जलायें । पीला भोजन करें तथा कथा सुनें । इससे गुरु भगवान प्रसन्न होते है, मनोकामना पूर्ण करते है । व्रत और पूजन की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर लौट आई । |