अंगिरावंशज अथर्वा ऋषि के द्वारा दृष्ट इस वेद को क्षत्रवेद , अंगिरावेद , अथर्वाङिगरस वेद , भृग्वंगिरसवेद , भैषज्यवेद , महीवेदादि भी कहा जाता है। अग्नि को उद्बबोधित करने वाले पुरोहित को अथर्वन् कहा जाता था तथा अंगिरस शब्द भी अग्नि पुरोहित के अर्थ मे प्राप्त होता है । अत: अथर्ववेद अग्निप्रधान वेद है । पातञ्जल महाभाष्य में अथर्ववेद की १शाखाओं का उल्लेख मिलता है - नवधाऽऽथर्वणोवेद: । सम्प्रति मात्र २शाखायें मिलती हैं - पैप्पलाद एवं शौनक । इन शाखाओं की संहिताओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-
पैप्पलाद संहिता - इस संहिता की पाण्डुलिपि कश्मीर में प्राप्त हुयीथी अत: इसे कश्मीरी अथर्ववेद कहा जाता है । पिप्लाद ऋषि के नाम से इस शाखा का नाम पैप्पलादपड़ा। इस संहिता का प्रथम मंत्र शन्नोदेवीरभिष्टये है । इस संहिताका प्राचीन काल में अत्यंत प्रचार था । प्रश्नोपनिषद् का संबंध इसी संहिता से है ।
शौनक (शौनकीय) संहिता - यह संहिताअत्यंत प्रसिद्ध है । इसमें 20 काण्ड , 36 प्रपाठक एवं 730 सूक्त हैं । इस संहिता में ईश्वर-प्रार्थना , मोहन-उच्चाटन ,विवाहवर्तनी , आध्यात्मविद्या , दु:ख , दु:स्वप्नमोचन , अभ्युदयप्रार्थना , पितृमेध , जल , अग्नि से सम्बन्धित मंत्र हैं ।
अथर्ववेद में भैषज्य (रोगों के निवारण , वृक्षों की उपयोगिता आदि से सम्बद्ध ), आयुष्य( दीर्घायु प्राप्त के उद्देश्य पूर्ति हेतु ) , पौष्टिक ( गृहनिर्माण , पशुरक्षा, हलप्रवहण आदि ), प्रायश्चित ( धार्मिक क्रियाओं एवं सामाजिक जीवन के अपराधों के परिमार्जन हेतु ), स्त्रीकर्म, राजकर्म ( राष्ट्र , देशरक्षा , राजकर्तव्य , सभासमिति आदि राजशास्त्र से सम्बद्ध) तथा ब्रह्मण्य ( विराट् ब्रह्म, उच्छिट ब्रह्म , माया, ईश्वर आदि आध्यात्मिक विष्य ) से सम्बद्ध सूक्त हैं ।
अथर्ववेद का पृथ्वी सूक्त अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । इसमें भूमि की वंदना माता के रुप में की गयी है- माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या: । इस सूक्त में पृथ्वी को समग्र पार्थिवों की जननी एवं पोषिका कहा गया है । प्रजा की दु:खदायी परिस्थितियों से रक्षा करने के लिये एवं संपत्ति की वृष्टि के लिये प्रार्थना की गयी है । बी.के. घोष ने पृथ्वी सूक्तको वेदिक भारत का राष्ट्रगान कहा है । अन्य संहिताओं से परवर्ती मानी जाने वाली अथर्वसंहिता में समाज, राजनीति, धर्म, विज्ञान , दर्शन आदि पक्षों का निरूपण होने के कारण इसका अत्यन्त महत्त्व है ।